मुझे मेरे दोस्तों पर गर्व है. अगर कुछ लिखे हुए मुझे काफी दिन हो जाते है तो मुझे कई तरीकों से परेशान किया जाता है और मेरी सृजनात्मक प्रवृत्ति को कचोट कचोट कर सृजन में लगाया जाता है. नतीजा आपके सामने है. इस बार हिन्दी में मओवादिओं के लिए एक कविता लिखी है. काफी दिनों से दिमाग में ये ख़याल था की बदलाव की जो आंधी बुलाई जा रही है, वो अपने पीछे क्या छोड़ कर जायेगी? इतिहास को देखकर तो लगता नहीं कुछ ख़ास बदलेगा.
अंजाम
आज़ादी के नाम का बवाल हो गया
नारे लगाना ललकार हो गया
क्रांति तो बस आई ही थी
बंदूकें चलते देर न लगी
हर किसान चंडाल हो गया
भीड़ में गुनहगार हो गया
फसलें तो बस बोई ही थी
हल-फलक बनते देर न लगी
जो गद्दार था हलाल हो गया
जन को लगा पलटवार हो गया
पूंजीवाद की ध्वजा जली ही थी
लाल-विजय पताका फेहेरते देर न लगी
सूरज केसरी से लाल हो गया
हर नेता सूबेदार हो गया
स्वतंत्र सपनो की नींद आई ही थी
तानाशाह बदलते देर न लगी
Sunday, November 08, 2009
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